अप्रैल,27,2024
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विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, भ्रष्टाचार सब राम के भरोसे…

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विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, भ्रष्टाचार सब राम के भरोसे…

विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, भ्रष्टाचार सब राम के भरोसे…अमर ठाकुर, पोलिटिकल रिपोर्टर, नई दिल्ली देशज टाइम्स ब्यूरो। अयोध्या में फिर एक बार फिर से जबरदस्त ड्रामा चल रहा है। जब से इस ड्रामा की पटकथा लिखी गई तब से देश में विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे गौण हो चुके हैं। हर जगह बस चर्चा है तो राम मंदिर की, अयोध्या की, राम के नाम पर राजनीति की। केंद्र में खुद को गैर-राजनीतिक संगठन बताने वाले लोग की ही सरकार है। ताज्जुब है कि यही लोग अपनी ही सरकार से मंदिर बनाने वाली बात का याद दिलाने के लिए अयोध्या में जमावड़ा लगाए हुए हैं। अब तो डिजिटल इंडिया का जमाना है, फोन कॉल भी काफी सस्ते हो चुके हैं। गैर-राजनीतिक संगठन की सरकार केंद्र व उत्तर प्रदेश में है। यहां तक की राष्ट्रपति भवन में भी इसी संगठन से जुड़े लोग बैठे हैं। उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर भी इसी परिवार के लोग विराजमान हैं। जिस तरह से एक झटके में नोटबंदी का निर्णय लिया गया, तीन-तलाक पर अध्यादेश लाया गया, रात के बारह बजे घंटी बजाकर वस्तु व सेवाकर

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कानून लागू किया, क्या उसी तरह अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए भी निर्णय नहीं लिया जा सकता है? मगर तब देश के हिंदुओं को मालूम कैसे चलेगा कि संघ परिवार ने कठिन संघर्ष करके मंदिर की नींव रखवाई है। राम राजनीति के केंद्र में कैसे आएंगे? देश के मुसलमान तो यूं भी संघ से टकराने की राजनीतिक हैसियत खो चुका है और सेकुलरिज्म का झंडा उठाने वाले भी अपनी बचीखुची जमीन जनेऊ दिखाकर बचाने में लगे हैं। संघ आखिरकार अपने तथाकथित संघर्ष के लिए खलनायक किसे बनाए तो इसीलिए उसने नूरा-कुश्ती के लिए अपनी ही सरकार को चुन लिया है। गौर से इस ड्रामा को समझने की कोशिश करने पर इस खेल में फायदा इन्ही दोनों को है। साढ़े 4 वर्षों से सबका साथ, सबका विकास की बात कर शासन करने वाले विकास पुरुष मोदी से रामभक्त नाराज हैं। ज़ाहिर है, चुनावी मौसम में नाराज़ रामभक्त याद आए हैं। उन्हीं को साधने के लिए संघ अध्यादेश की हुंकार अपने संतों से भरवाएगा और उधर सरकार इसे पवित्र धर्मादेश की तरह ग्रहण करके धर्म का सम्मान करके दिखाएगी। इस तमाशे से कट्टर हिंदू खुश हो जाएगा और उसका भरोसा अपनी पार्टी में लौट जायेगा और संघ की धाक भी जमेगी ही। आज की तारिख का चुनाव भी बड़ी सोच-समझकर किया गया है। लोगों को राम के नाम पर भारी तादाद में इकट्ठा ना भी किया जा सका तो अयोध्या में पहले से जारी पञ्चकोसी यात्रा में पहुंची भीड़ को स्वयंसेवक बनाकर गिना दिया जा सकता है।

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इस गैर राजनीतिक धार्मिक कार्यक्रम के बाद एक और राजनीतिक संभावना उत्पन्न होती दिख रही है। अगर केंद्र सरकार संसद में राम मंदिर पर अध्यादेश लाती है तो चित भी भाजपा का होगा और पट भी। अगर अध्यादेश पर कांग्रेस चुप रही तो जीत मोदी जी की और अगर विरोध किया तो कांग्रेस को आसानी से हिंदू विरोधी साबित किया जाएगा। और इस तरह गर राजनीतिक संगठन संघ का राजनीतिक संगठन आसानी से अगला लोकसभा चुनाव जीत सकता है। कुछ जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी इसलिए ही टल रही है ताकि राम मंदिर की हांडी एक बार और राजनीतिक आग पर चढ़ाया जा सके। अगर लोकसभा चुनाव से पहले कोर्ट ने मंदिर बनानेवालों की पसंद का फैसला दिया तो इसका सारा श्रेय सरकार नहीं ले पाएगी और अगर फैसला पसंद का ना दिया तो सरकार ये ताने झेलेगी कि आखिरकार पहले ही कानून लाकर मंदिर बनाने में चूक क्यों की गई? गौर से देखा जाए तो संघ व भाजपा के लिए आदर्श स्थिति चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट में फैसला ना आना रहेगा। संघ व भाजपा बाहर ही एक मुसलमान विरोधी माहौल बनाकर राम के नाम पर 17वीं लोकसभा भी जीत सकती है।विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, भ्रष्टाचार सब राम के भरोसे…

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