प्राचीन इच्छुमती नदी (वर्तमान नाम कालीनदी) के तट पर करीब 10 वर्ग किमी क्षेत्रफल में बिखरे अतरंजीखेड़ा के अवशेषों से यह शिवमंदिर शास्त्रोक्त दक्षिण दिशा में अवस्थित है। एटा जनपद मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 15 किमी है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का कितना बड़ा केन्द्र है, इसकी पुष्टि इसी तथ्य से की जा सकती है कि यहां भगवान बुद्ध भी आ चुके हैं। पुराविद रामचंद्र गौड़ के अनुसार 7वीं सदी में आये चीनी यात्री ह्वेनसांग ने बेरंजा के इस शिवलिंग का उल्लेख अपनी पुस्तक में भी किया है। पुराविद इन शिवलिंगों को छठी शती का मानते हैं।
एटा, देशज टाइम्स। भारत ही नहीं संसार के प्राचीन नगर अवशेषों में एक अतरंजीखेड़ा का यह शिवमंदिर कितना प्राचीन है कहना मुश्किल है। अनुश्रुतियां इसे त्रेतायुगीन चक्रवर्ती नरेश बेन द्वारा स्थापित मानती हैं। मंदिर परिसर में मुख्य शिवलिंग के साथ 3 अन्य शिवलिंग भी स्थापित हैं। जो इस मंदिर को चतुर्मुखी शिवलिंग युक्त मंदिर बनाते हैं। मंदिर परिसर के विषय में बौद्ध साहित्य में उल्लिखित ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार यहां भगवान बुद्ध ने अपना 12वां वर्षावास व्यतीत किया है। इस उल्लेख के अनुसार इस प्राचीन नगर राज्य बेरंजा के तत्कालीन राजा अग्निदत्त शर्मा थे। इन्हीं के काल में भगवान बुद्ध यहां स्थापित आश्रम में अपना 12वां वर्षावास व्यतीत करने आये थे।
बौद्ध साहित्य में बुद्ध के इस प्रवासकाल की एक कथा भी प्रचलित है। इसके अनुसार भगवान बुद्ध के निवास के समय यहां अकाल पड़ा था। इस अकाल के समय राजा अग्निदत्त शर्मा ने अपनी प्रजावत्सलता का परिचय देते हुए अपनी प्रजा के लिए तो अपने राजभंडार खोल दिये किन्तु बुद्ध का अनुयायी न होने के कारण उनके व उनके अनुयायियों के आहार आदि की कोई व्यवस्था न की। इसके चलते बुद्ध को अपने वर्षावास में दुर्भिक्ष का सामना करना पड़ा। किन्तु स्थिति के अधिक भयावह होने से पूर्व यहां एक सार्थ के साथ आये व्यापारी को जब बुद्ध की इस दशा का ज्ञान हुआ तो उसने अपने सार्थ से बुद्ध व उनके अनुयायियों के खानपान की व्यवस्था की।