अप्रैल,26,2024
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भारतीय नववर्ष : ‘आनंद’ संवत्सर में रोग व राजकोष से पीड़ित रहेगी प्रजा, कीजिए इस मंत्र का जाप

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देशज टाइम्स आध्यात्मिक डेस्क, दरभंगा/लखनऊ। इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (25 मार्च, 2020) दिन बुधवार को प्रारम्भ हो रहा है। वर्षारम्भ में ‘आनंद’ नाम संवत्सर है, जो संकल्प आदि के लिए वर्ष भर प्रयोग किया जाएगा। यह 2077वीं संवत है। इस संवत में राजा बुध और मंत्री चंद्रमा होगा।

ज्योतिषाचार्य पं. संजय की मानें, आनंद संवत्सर में मौसमी फसलें नष्ट होंगी। सभी अन्न के भावों में वृद्धि तथा घी-तेल महंगे होंगे। जल वृष्टि अच्छी होगी। राजा व प्रजा दोनों सुखी रहेंगे। देश में विकास कार्य होंगे। नूतन अविष्कार होंगे। लोक हित में कार्य होंगे।

इस वर्ष बुध के राजा होने से पृथ्वी सजल रहेगी। कहीं-कहीं झंझवात के साथ खंड वृष्टि होगी। रोग व राजकोष से प्रजा पीड़ित रहेगी, फसल अच्छी होगी। औसत प्रजा में सात्विक प्रवृति की तथा घरों में मांगलिक कार्यों की बाहूल्यता रहेगी। जबकि चन्द्रमा के मंत्री होने से वर्षा अधिक होगी। अनेक प्रकार के अन्न से पृथ्वी पूर्ण रहेगी। ब्राह्मण, सज्जन व पशुओं की वृद्धि होगी। जंगल में फल, पुष्प, जल एवं प्राणियों की वृद्धि होगी।

युवा संत ब्रह्मचारी वागीश शास्त्री बताते हैं, कालगणना में कल्प मन्वंतर युग आदि के पश्चात् संवत्सर का नाम आता है। युग वेद से सतयुग में ब्रह्म संवत् त्रेतायुग में वामन संवत् और परशुराम संवत् तथा श्रीराम संवत्, द्वापरयुग में युधिष्ठिर संवत् और कलयुग में विक्रमी, शालिवाहन संवत्,महावीर संवत् श्रीशंकराचार्य संवत् और भी अनेकों संवत अलग-अलग पंथ-संप्रदायों के चलते रहते हैं।

प्राचीन ग्रंथों में भी जब हम देखते हैं तो ब्रह्मा ने सृष्टि का आरंभ 1,97,29,49,112 एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 112 वर्ष पूर्व सृष्टि का आरंभ होता है और आज विज्ञान भी इस बात को मानने के लिए तैयार है कि लगभग यह सृष्टि दो करोड़ वर्ष पूर्व हुई है।

इस बार नव संवत्सर का प्रवेश समय कर्क लग्न का उदय हो रहा है, जिसके प्रारंभ में ही देश के अंदर कुछ उत्तल-पुथल का आकलन किया जा सकता है। साथ में जैसे ही दिन आगे बढ़ते रहेंगे तो सारा कुछ अनुकूल होता रहेगा। देश की अभिवृद्धि होगी, राज्य तंत्र लोकतंत्र में लोगों की रुचि बढ़ेगी और नेतृत्व की ओर भी लोगों के प्रति श्रद्धा होगी, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है।
पं. संजय बताते हैं, इस वर्ष गुरु के सस्येश होने से प्रजा के सात्विक प्रवृति की बहुल्यता वैदिक तथा सनातन धर्मों का प्रचार प्रसार होगा, जो जगत के लिए मंगलदायक होगा। वर्षा अधिक होगी। अनेक प्रकार के अन्नों से पृथ्वी पूर्ण रहेगी। टंकण तथा मगध के प्रांतों में खंड वृष्टि तथा फसल मध्यम होंगे।

इस वर्ष सूर्य के मेघेश होने से चने दहलन, तेलहन, चावल सांवा, कोदो आदि के उपज अच्छी होगी। पृथ्वी पर औसतन सुख शांन्ति की वृद्धि रहेगी। शनि के रसेश होने से पृथ्वी पर औसतन सुवर्ण, रस तथा तरलीय पदार्थों में न्यूनता रहेगी। सुगंधित वस्तुएं घी, ईख, कन्दमूल तथा अन्य वस्तुओं में वृद्धि रहेगी।
गुरु के नीरसेश होने से हल्दी, पीली धातु, पीले वस्त्र, पीले रंग के अन्य पदार्थों में मंदी रहेगी। प्रजा में प्रीति तथा प्रसन्नता रहेगी। सूर्य के फलेष होने से पृथ्वी, फल, पुष्प, अन्न, वृक्षादिकों से आच्छादित तथा आनन्दित रहेगी।

इस वर्ष गुरु के धनेश होने से व्यवसायिक वर्गों के लिए लाभ रहेगा। औसतन फल, पुष्पों में वृद्धि होगी। प्रजा में धन संग्रह की प्रकृति अधिक रहेगी। इस वर्ष चन्द्रमा के दुर्गेश होने से देशादि के प्रति प्रसन्नता, प्रजा प्रफुलित रहेगी। ईख, गोरस तथा इनसे निर्मित वस्तु के क्रय-विक्रय से लाभ होगा। उच्च स्तरीय लोगों में विवादादि की स्थिति बनी रहेगी। इस वर्ष मंगल के धान्येश होने से ग्रीष्म धान्य, चावल, ईख, घी, तेल, तरलीय पदार्थों में तेजी का रुख रहेगा।
युवा संत ब्रह्मचारी वागीश शास्त्री बताते हैं कि संवत् का राजा बुध होने से बुद्धि का कारक है, इसीलिए बुद्धि संबंधित जितने भी कार्य होंगे, उनमें अभिवृद्धि करेगा और देश के बौद्धिक कौशल को बढ़ाएगा। धार्मिक कार्यों का भी विकास होगा और देश के अंदर राजनीतिक क्षेत्रों में भी विकास करेगा। जिससे कारण उच्च पदस्थ प्रशासकों का अपने सहयोगियों के प्रति असंतोष एवं आक्रोश की स्थितियां भी उत्पन्न होंगी,
परंतु अधीनस्थ सभी लोग प्रशासक के अनुकूल ही कार्य करते रहेंगे।
राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप बढ़ेगा तथा जनता को राष्ट्र के प्रति राष्ट्रहित में कठोर नियमों के कारण कुछ परेशानियां उपस्थित होंगी। विश्व बाजार में भारत की भागीदारी बढ़ेगी, जिससे राष्ट्र की उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। विश्व के अनेक राष्ट्र विषम परिस्थितियों में भारत के साथ सहयोग के लिए तत्पर रहेंगे।
ऐसे मनायें ‘चैत्र शुक्ल प्रतिपदा’
नवरात्र के शुभ अवसर पर प्रातः स्नान करके संध्या वंदन करके अपने घर में कलश स्थापना करना चाहिए। कलश के किनारे ‘जौ’ और दूर्वा को रोपन करना चाहिए। यह उन्नति का कारक होता है। साथ में ही भगवती को प्रतिष्ठित करके नित्य उपासना कर्म चलाना चाहिए। घर में देशी घी का दीपक जलाना चाहिए और भगवती की आराधना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती का पाठ श्रद्धा पूर्वक एक आसन पर बैठकर करें।
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। 
पूरे विश्व के अंदर महात्रासदी महामारी ‘कोरोना वायरस’ का प्रकोप चल रहा है। इसीलिए श्रद्धा पूर्वक इस त्रासदी से बचने के लिए इस मंत्र का जाप करें। यह मंत्र दुर्गा सप्तशती के अर्गला नाम के स्तोत्र में प्रथम मंत्र के रूप में आता है। परिवार सहित इस मंत्र का पाठ करें तो सुख, समृद्धि के साथ निरोगी रखने में कारगर साबित होगा। इस मंत्र के साथ मां भगवती का आराधना करने से आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होगा, जिससे सभी प्रकार के मनोरथ कामनाएं पूर्ण होंगी।
ऐसा करने से ‘कोरोना वायरस’ भारतवर्ष को मुक्ति मिलेगी। उसका विनाश होगा और हमें भय से मुक्ति प्राप्त होगी। नवसंवत्सर पर हम अपने घर पर नीम का पत्ता एवं काली मिर्च का सेवन जरूर करें। इससे वर्ष पर्यंत पित्त विकार नहीं होगा और अनेकों प्रकार के रोग भी नाश होंगे।

लक्ष्मी श्री मिश्र बताती हैं,नवसंवत्सर पर भगवान के 3 नामों का उच्चारण जरूर करें। भगवान धन्वंतरी आयुर्वेद शास्त्र में कहते हैं, सब रोगों के नाश के लिए एवं महाव्याधि नाश के लिए सब शास्त्रों का सार रूपी मंत्र यही है। ‘अच्युताय नमः, अनन्ताय नमः, गोविंदाय नमः’। इस मंत्र के जाप से आपका कल्याण होगा। नवरात्र में आप शक्ति की आराधना करिए। भगवान के नाम की उपासना करिए, यही आपके लिए एक सफल प्रयोग सिद्ध होगा।

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