अप्रैल,19,2024
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कोरोना से मरणासन्न पति की आखिरी निशानी के लिए युवती की बड़ी पहल, मरणासन्न युवक के स्पर्म संकलित, आईवीएफ से मां बन सकेगी महिला

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मुख्य बातें
गुजरात हाई कोर्ट के आदेश पर मरणासन्न युवक के स्पर्म संकलित, आईवीएफ से मां बन सकेगी महिला
कोरोना संक्रमित युवक के बचने की उम्मीद कम, वडोदरा स्टर्लिंग अस्पताल में स्पर्म संकलन की प्रक्रिया पूरी

 

वडोदरा/अहमदाबाद। स्थानीय स्टर्लिंग अस्पताल में भर्ती एक कोरोना संक्रमित मरीज का स्पर्म लेने के मामले में आखिरकार पत्नी का प्यार जीत गया। हाई कोर्ट ने पत्नी की मांग पर मृत्यु शैय्या पर लेटे एक युवक के स्पर्म लेने की अनुमति दे दी। इसके बाद में स्टर्लिंग अस्पताल ले युवक के स्पर्म संकलित किए गए। कोर्ट के आदेश के बाद इस स्पर्म से आईवीएफ प्रक्रिया के जरिए पत्नी मां बन सकती है।

 

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बुधवार को वडोदरा स्टर्लिंग अस्पताल के ज़ोनल निदेशक अनिल कुमार नांबियार, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. ज्योति पाटनकर और चिकित्सा प्रशासनिक विभाग के डॉ. मयूर डोडिया ने संयुक्त रूप से पत्रकार वार्ता में इस मामले की पूरी जानकारी दी।

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उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद 20 जुलाई की शाम साढ़े सात बजे के बाद शाम पांच बजकर 09 मिनट पर मरीज के शुक्राणु लेने की प्रक्रिया शुरू की गयी और मरीज की टीईएसई (वृषण शुक्राणु निष्कर्षण) विधि से शुक्राणु संकलित किए गए हैं। इन स्पर्म को वडोदरा की एक प्रयोगशाला में रखा गया है।

 

अस्पताल की टीम ने बताया कि इस प्रक्रिया के लिए आवश्यक अनुमति के दस्तावेजों की प्रक्रिया पूरी होने के बाद किया गया। डॉक्टरों के अनुसार मरीज कई गंभीर बीमारियों के चलते गहन उपचाराधीन है। उन्होंने बताया कि मरीज के बचने की कम संभावना को ध्यान में रखते हुए परिवार को इस संबंध में जानकारी देकर उनका मार्गदर्शन किया गया है। बाद में हाई कोर्ट के आदेश के बाद मरीज के शुक्राणु लिए गए हैं।

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मरीज के शुक्राणु का उपयोग करके आईवीएफ की प्रक्रिया से पत्नी मां बन सकेगी। अस्पताल के डॉक्टरों टीम ने बताया कि स्टर्लिंग अस्पताल के लिए यह पहला मामला है।

दरअसल, कोरोना संक्रमित पति के बचने की उम्मीद कम होने पर पत्नी ने अपने पति के प्यार को जिंदा रखने के लिए एक बड़ा कदम उठाया। पत्नी ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर आईवीएफ प्रणाली के माध्यम से एक बच्चा जन्म देने के लिए पति के शुक्राणु एकत्र करने की मांग की थी।

 

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बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर के पास मरीज के शुक्राणु लेने के लिए केवल 24 घंटे हैं। इसलिए इस मामले को अगली सुनवाई तक नहीं टाला जा सकता था। कोर्ट ने सिर्फ 15 मिनट में सुनवाई पूरी कर युवक के शुक्राणु एकत्र करने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने अस्पताल को भी जल्दी ही स्पर्म लेने के आदेश दिए।

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