मार्च,29,2024
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देशज टाइम्स खास ख़बर: आ अब लौट चलें, फिर अगले साल होगी ‘पानी’ की तलाश, पानी के लिए होती है मगध से मिथिला की यात्रा, पढ़िए पूरी स्टोरी

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बेगूसराय। पानी के व्यथा की कथा कोई नई बात नहीं है। लंबे समय से सिर्फ मनुष्य ही नहीं, सभी जीव-जंतु पानी के लिए पानी-पानी होते हैं। आज के इस आधुनिक युग में मनुष्य बहुत प्रगति कर चुका है। लेकिन, आज भी पानी के लिए मनुष्य ही नहीं, जीव जंतु और मवेशी भी परेशान होते हैं।
हालत यह है कि पशुपालक अपने मवेशियों को पानी उपलब्ध कराने के लिए दो-तीन सौ किलोमीटर से भी अधिक दूर जाते हैं। इस दौरान कभी पशुपालक तो कभी उनके पशु सड़क हादसा और विषैले जीव-जंतुओं का शिकार हो जाते हैं। बावजूद इसके उनकी यह पानी की तलाश प्रत्येक साल होती है।
हालत यह है कि पहाड़ी इलाके जमुई के पशुपलकों को पांच-सात नदी पार कर अपने मवेशी को लेकर पानी के लिए जाना ही पड़ता है। इस साल भी फरवरी में जमुई, शेखपुरा, नवादा के पांच सौ से अधिक पशुपालक अपने हजारों देसी गाय एवं भैंस को लेकर बेगूसराय और बेगूसराय के सीमावर्ती समस्तीपुर, दरभंगा एवं खगड़िया के विभिन्न इलाकों में डेरा डाला था। चार महीने तक यह लोग खुले आसमान के नीचे मवेशियों को लेकर रहे।
अब जब गंगा, बूढ़ी गंडक, करेह, बागमती समेत तमाम नदियों में जल स्तर बढ़ने लगा तथा गंगा के द्वारा क्षेत्र में पानी फैलने की आशंका से आप सभी पशुपालक अपने मवेशी को लेकर पांव-पैदल अपने घर की ओर लौट चलें हैं, 20-25 दिनों मे यह लोग अपने घर पहुंचेंगे।
बिहार से हजारों मजदूर रोजी-रोटी की तलाश में प्रतिदिन परदेश जाते ही हैं, लेकिन यहां के पशुओं को भी पानी की तलाश में मालिक के साथ पैदल दो-तीन सौ किलोमीटर जाना पड़ता है तो परेशानी का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन यह ही श्वेत क्रांति के साधक हैं, इन्हीं लोगोंं की बदौलत बिहार में देसी गाय की नस्ल रामतेरी और बछौड़ जिंदा है, लोग नाम जानते हैं।
पशुपालकों की अपने मवेशी को लेकर पानी की खोज में यह पदयात्रा मगध से शुरू होकर राजेंद्र सेतु (सिमरिया पुल) होते हुए मिथिला में प्रवास करते हुए घर वापसी कर समाप्त होती है। इस दौरान अनियंत्रित वाहन, बिजली, सर्पदंश एवं बीमारी के आगोश में आकर दर्जनों पशु काल कलवित हो जाते हैं।
कभी-कभार पशु पालकों को भी अपने आगोश में ले लेती है तथा उनके शव को गरीबी की मार झेल कर ले जाने के बदले वहीं पर साथियों द्वारा अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। बुधवार को सिमरिया पुल के रास्ते दो हजार से अधिक गाय के साथ जा रहे जमुई के रहने वाले पशुपालक विनोद राय, भीखन राय, महेश राय आदि ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण हमारे यहां फरवरी से ही पानी की किल्लत होने लगती है।
जिसके कारण प्रत्येक साल जीविका के साधन मवेशी को लेकर लखीसराय, पटना, बेगूसराय एवं समस्तीपुर जिला पार करके दरभंगा, खगड़िया में रहना पड़ता है। इस बार भी हम लोगों ने चमथा दियारा में डेरा डाला था, जिससे कि गाय-भैंस जिंदा रह सके। हम सैकड़ों पशुपालक किसान चार-पांच माह तक घर से दूर रहते हैं।
आखिर करें भी तो क्या, प्रकृति की मार सहने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता है। जल स्तर का बढ़ना शुरू होने के बाद अब हम लोग घर लौट रहे हैं। हमारे पानी की तलाश एक बार फिर अगले साल शुरू होगी।
Deshaj Times Special News Come now let's go back, then next year will be in search of 'water', travel from Magadha to Mithila for water, read the full story
Deshaj Times Special News Come now let’s go back, then next year will be in search of ‘water’, travel from Magadha to Mithila for water, read the full story

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