अप्रैल,25,2024
spot_img

बदहाल सेहत का राज: बिहार में प्रति एक लाख आबादी पर 20 डॉक्टर, दस वर्षों में खुले मात्र दो मेडिकल कॉलेज, -160 नर्सिंग संस्थानों मात्र दो ही शुरू हुए

spot_img
spot_img
spot_img

-भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

 

 

 

 

पटना। बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने जो रिपोर्ट दी है वह यहां के स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल रही है। सीएजी की जारी रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी डॉक्टर-नर्स-प्रसाविका आबादी के अनुपात में बहुत ही कम है। अनुपात का राष्ट्रीय औसत प्रति एक लाख की आबादी पर 221 है, जबकि बिहार का औसत मात्र 19.74 है।

 

 

 

 

रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 10 साल में 11 मेडिकल और एक डेंटल कॉलेज खोलने की बात कही गई थी लेकिन अब तक दो ही खुल पाए हैं। 160 नर्सिंग संस्थानों मात्र दो ही शुरू हुए हैं। हालांकि, बिहार देश की कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत के साथ तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है।

 

 

 

 

 

पिछले दिनों विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने विधायकों के सवाल पर यह माना कि बिहार में चिकित्सकों के 6,000 से अधिक पद रिक्त हैं और उसको भरने की प्रक्रिया चल रही है लेकिन सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार 12वीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार बिहार में चिकित्सकों की आवश्यकता और उपलब्धता का जो आंकड़ा सामने आया है वह इससे अलग है। यहां डॉक्टर-नर्स की घोर कमी है। एक अच्छी बात है कि बिहार में आयुष चिकित्सकों की कमी नहीं है। 51 हजार 793 आयुष चिकित्सक होने चाहिए लेकिन इससे अधिक 53,918 आयुष चिकित्सक हैं।

 

यह भी पढ़ें:  Madhubani News| Benipatti News | रजघट्टा में आग की तबाही, बच्चे को बचाने में झुलसी मां...तीन घर राख में जमींदोज

 

 

 

सीएजी रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। बिहार में चिकित्सा पदाधिकारियों के आधे से अधिक पद खाली पड़े हैं। यहां फिलहाल 5,894 चिकित्सा पदाधिकारी कार्यरत हैं, जबकि 6,520 पद खाली पड़े हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार बिहार में स्टाफ नर्स ग्रेड ए का 9,130 पद खाली थे। इसमें से 5,097 पद पिछले साल तक भरा गया है, जबकि 4,033 पद अभी भी रिक्त हैं। इसके अलावा एएनएम के भी काफी पद रिक्त हैं। इन विभागों में बहाली की प्रक्रिया एक साल पहले शुरू हुई थी जो अभी तक पूरी नहीं हुई है।

 

 

 

 

बिहार के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की संख्या जरूरत से 56 प्रतिशत कम है। सीएजी ने तो अपनी रिपोर्ट में यहां तक कहा है कि बिहार सरकार ने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जितनी राशि की व्यवस्था की उसमें से 75 प्रतिशत राशि बच गई। आउटसोर्सिंग एजेंसियों को पेमेंट भी अधिक किया गया। वहीं, 2030 तक प्रति लाख आबादी पर 550 डॉक्टर और नर्स का लक्ष्य नीति आयोग ने रखा है। ऐसे में बिहार के लिए इस लक्ष्य को पाना वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए बड़ी चुनौती है।

यह भी पढ़ें:  Madhubani News। Harlakhi News। बासोपट्टी SBI से कैश लेकर लौट रहे CSP संचालक की पत्नी और पुत्र से बड़ी लूट, बाइक सवार अपराधी 1 लाख लूटकर फरार

 

 

 

 

शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारी का अभाव

सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक मेडिकल शिक्षा के सभी शाखाओं में शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारी की कमी निर्धारित मानदंडों के विरुद्ध छह से 56 प्रतिशत और आठ से 70 प्रतिशत के बीच था। प्रदेश के पांच मेडिकल कॉलेजों में वास्तविक शिक्षण घंटे में भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की शर्तों के विरुद्ध 14 से 52 प्रतिशत के बीच कमी थी। शिक्षण घंटों में कमी का मुख्य कारण संकायों का आभाव था। मेडिकल-आयुष और नर्सिंग कॉलेजों में अपर्याप्त आधारभूत संरचना का भी जिक्र रिपोर्ट में किया गया है।

 

 

 

मेडिकल कॉलेजों में उपकरण का अभाव

रिपोर्ट के मुताबिक नमूना-जांचित राज्य के पांच मेडिकल कॉलेजों में 2017-18 के दौरान मेडिकल कॉलेजों में 20 नमूना जांचित विभागों में मेडिकल उपकरण की कमी 38 से 92 प्रतिशत के बीच में थी। पटना स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) के दो विभाग, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) बेतिया के आठ विभाग, दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (डीएमसीएच) के एक विभाग में सभी प्रकार के उपकरणों में कमी सीएजी की रिपोर्ट में सामने आयी है। मेडिकल कॉलेजों के साथ ही सभी नर्सिंग संस्थानों के छात्रों को मानदंडों के अनुसार 2013-18 के दौरान ग्रामीण इंटर्नशिप से पर्याप्त रुप से अवगत नहीं कराया गया।

यह भी पढ़ें:  Bihar Lok Sabha Election 2024 | Bihar News | HOT-DAY | Hot Weather | बिहार में Voting की Timing Change...अब इतने बजे पड़ेंगे Vote

 

 

 

 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में आबादी के अनुपात में डॉक्टरों-नर्सों की संख्या और स्वास्थ्य सुविधाएं काफी कम हैं। यही कारण है कि यहां से बड़ी संख्या में लोग इलाज के लिए बाहर जाते हैं। बिहार में 10 साल में 11 मेडिकल और एक डेंटल कॉलेज खोलने की बात कही गई थी लेकिन अब तक मात्र दो की शुरूआत हुई है।160 नर्सिंग संस्थान चालू होने थे। इसमें से केवल दो ही शुरू हुए हैं। इतना ही नहीं एक लाख की आबादी पर महज 19.74 डॉक्टर्स और नर्स हैं जो राष्ट्रीय औसत से 60 प्रतिशत कम है।

 

 

बिहार के वरिष्ठ चिकित्सक और आईएमए के अध्यक्ष डॉक्टर अजय कुमार के मुताबिक बिहार में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना (एनआरएचएम) के अनुसार 38 मेडिकल कॉलेज होने चाहिए थे लेकिन आधे से भी कम हैं। बिहार में सरकारी और निजी डॉक्टर मिलाकर 40,000 के आसपास होंगे लेकिन आबादी के हिसाब से 1,00,000 डॉक्टर चाहिए। पांच मेडिकल कॉलेज अभी प्रतीक्षा सूची में हैं लेकिन सरकार के पास फैकल्टी नहीं है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए सरकार ने पॉलिसी में बदलाव किया तो स्थिति बदलेगी लेकिन उसमें भी लंबा समय लगेगा।

ताज़ा खबरें

Editors Note

लेखक या संपादक की लिखित अनुमति के बिना पूर्ण या आंशिक रचनाओं का पुर्नप्रकाशन वर्जित है। लेखक के विचारों के साथ संपादक का सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित। देशज टाइम्स में प्रकाशित रचनाओं में विचार लेखक के अपने हैं। देशज टाइम्स टीम का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है। कोई शिकायत, सुझाव या प्रतिक्रिया हो तो कृपया deshajtech2020@gmail.com पर लिखें।

- Advertisement -
- Advertisement -
error: कॉपी नहीं, शेयर करें