पटना, देशज टाइम्स। आसमान में आतिशबाजी के नजारे अक्सर देखने को मिल जाते हैं, लेकिन आसमान में प्रकृति की आतिशाबाजी देखना एक अद्भुत अनुभव होता है। ऐसा ही एक अद्भुत और अविष्मरणीय नजारा सोमवार और मंगलवार की रात 10 बजे से पहले देखने को मिलेगा, जब प्रति घंटे एक दर्जन उल्का पिंड और कुल मिलाकर 50 या उससे अधिक उल्का पिंडों की आकाश में बारिश होगी। धरती के वायुमंडल में प्रवेश करते ही यह उल्का पिंड जलनेे लगते हैं और यह नजारा देखने लायक होता है। यह जानकारी देते हुए वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी आरा के रसायन शास्त्र के प्रोफेसर डॉ.राम तवक्या सिंह ने बताया कि उल्का पिंडों की बारिश तब होती है जब अंतरिक्ष-जनित मलबे के एक फैलाव में धरती प्रवेश करती है। यह मलबा आमतौर पर एक बड़े धूमकेतु या क्षुद्रग्रह का टुकड़ा होता है, जो वहां से बहुत पहले से गुजरता था। उन्होंने बताया कि रात करीब 10 बजे के पहले इस नजारे को देखा जा सकेगा।
हालांकि चंद्रमा की रोशनी की वजह से हो सकता है कि नजारा इतना खूबसूरत न दिखे। फिर भी आकाशीय आतिशबाजी साफ देखी जा सकेगी। आमतौर पर एक ही समय में उल्का बौछार को देखा जाता है क्योंकि पृथ्वी इस समय मलबे के उसी क्षेत्र से होकर गुजरती है, जो सूर्य के चारों ओर अपनी वार्षिक कक्षा में स्थित होती है। जब मलबे का एक टुकड़ा लगभग 60 मील की दूरी पर धरती के बाहरी वातावरण में प्रवेश करता है, तो घर्षण के कारण यह जल जाता है। अधिकांश शूटिंग सितारें, जिन्हें वास्तव में देखा जाता है, वह कंकड़ चावल या छोटे अनाज के होते हैं। नासा के मौसम संबंधी पर्यावरण कार्यालय का नेतृत्व करने वाले बिल कुक कहते हैं कि यदि आपको आसमान में एक आग का गोला दिखता है, तो यह शायद उससे बड़ा हो सकता है। ये टुकड़े एक सेंटीमीटर से बड़े हो सकते हैं। यद्यपि उनकी मौलिक रचना को निर्धारित करना कठिन है, लेकिन कुछ उल्काओं में मैग्नीशियम, लोहा, कार्बन और सिलिकॉन पाए जाते हैं।