अप्रैल,26,2024
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लखनऊ में बुद्धिजीवियों का जुटान, हिंदी साहित्य लेखन स्वतंत्र व निष्पक्ष रखने पर दिखा जोर

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फणींद्र तिवारी लखनऊ, देशज टाइम्स। मार्तण्ड साहित्यिक, सांस्कृतिक व समाजिक संस्था, लखनऊ के तत्त्वावधान में हिंदी पखवाड़े की पंचम काव्य गोष्ठी छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय लोक गायिका, साहित्यकार व शिक्षिका लक्ष्मी करियारे  की अध्यक्षता व सुरेश कुमार राजवंशी के संयोजन व कुशल संचालन में संपन्न हुई।

कार्यक्रम का शुभारंभ उत्तराखंड के रामरतन यादव  की वाणी वंदना से हुआ। ऐसा वर दो मातु शारदे मिट जाए मन का अभिमान। लक्ष्मी करियारे ने हिंदी पखवाड़े की पंचम ई सरस काव्य गोष्ठी के अवसर पर कहा, हिंदी साहित्य ही समाज का वास्तविक दर्पण हो सकता है। हिंदी साहित्य लेखन स्वतंत्र व निष्पक्ष होना चाहिए। किसी धर्म या जाति व व्यक्ति विशेष के आधार पर नहीं होना चाहिए। साहित्य का सृजन सर्व समाज के हित को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए, साथ ही हिंदी राजभाषा को राष्ट्र भाषा बनाने पर अधिक बल देते कहा, हिंदी हमारे देश की सर्वाधिक बोले जाने वाली तीसरी भाषा है। हिंदी भाषा ही हम सब को समाज से जोड़ने का कार्य करती है।

हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर तर्कसंगत होना चाहिए, जो रूढ़िवादिता से परे हो। सभी कलमकारों को हिंदी पखवाड़े की पंचम सरस गोष्टी व कवि सम्मेलन के अवसर पर हमारी सभी कलमकारों/विदुषी/ विद्वानों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ । कवियत्री सुश्री लक्ष्मी करियारे ने सीमा पर शहीद हुए जांबाज रणबांकुरे की मां की हृदय विदारक संवेदना को अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा में कुछ इस तरह सुनाया, सभी की आंख नम हो गई – मोरे राजा दुलरूवा बेटा तुलाकुनि बनिजांऊ मैं खोजूं, भारत भुइयां पर प्राण गवाई।

कवि पंडित बेअदब लखनवी ने पंकज पलाॅस की सुंदर गज़ल – साया बना के रांझे का एक हीर खींच दी, लफ्ज़े वफ़ा की हुबहू तस्वीर खींच दी, पढकर सभी का दिल जीत लिया । वहीं संचालक कवि सुरेश कुमार राजवंशी ने- आयी शाम सुहावनी, खेलू प्रीतम संग, खेल खेल में यूं लगी, साजन तेरे अंग। सुनाकर वाहवाही लूटी।

कवि सत्यपाल सिंह “सजग”ने – चांद निरखते मधुर मिलन की बीत न जाए रात, प्रीतम कहिए मन की बात। सुनाया तो कवि रामरतन यादव ने – बेटी की किलकारी घर में, सुनाकर वाहवाही लूटी। कवि प्रेम शंकर शास्त्री “बेताब” ने वीर सैनिकों की शान में पढ़ा- सरहदें हम बचाते रहे रात -दिन, जान अपनी लुटाते रहे रात-दिन ,माटी चंदन बनी ये मेरे देश की , तन पे उसको लगाते रहे रात-दिन।

कवि सरस्वती प्रसाद रावत ने- धर्म के नाम भारत की आवाम को बंटते देखा है। छत्तीसगढ़ के ही कवि सूरज श्रीवास ने मां की महिमा का बखान करते हुए पढ़ा – मां मेरी भोली भाली है, दुनिया से निराली है। तो कवयित्री रेनू वर्मा ने -बैठ किनारे देख रही थी सागर की गहराई में, डूब रहा था मेरा सूरज अंबर की अंगनाई में ।सुनाकर सभी को भावविभोर कर दिया।

कवि बी सी मेवाती ने – जो शुकून अपने में, वो परायों में कहां, जब अपने ही रूंठ जाएं, तो फिर शिकायत कहां। कार्यक्रम में उपस्थित कवि सर्व पं. बे अदब लखनवी, कवि एस के राजवंशी, कवि सत्यपाल सिंह “सजग” उत्तराखंड, कवयित्री शुचिता अजय श्रीवास्तव उत्तराखंड, कवि रामरतन यादव उत्तराखंड, कवि महेंद्र नारायण पंकज, मधेपुर बिहार, कवि बीसी मेवाती, कवि एस.पी.रावत कवयित्री रेनू वर्मा, कवि प्रेम शंकर शास्त्री बेताब सहित लगभग बीस कवियों ने समसामयिक रचनाओं को सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरी। अंत में संस्था के अध्यक्ष श्री सरस्वती प्रसाद रावत ने धन्यवाद ज्ञापित कर समारोह का समापन किया।लखनऊ में बुद्धिजीवियों का जुटान, हिंदी साहित्य लेखन स्वतंत्र व निष्पक्ष रखने पर दिखा जोर

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