अप्रैल,26,2024
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कवियों के रसधार के साथ जीवंत हुई साहित्य, दलित-शोषित-निर्बलों को न्याय की उठी आवाज

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साहित्य समाज का दर्पण होता है । सही मायने में दलित, शोषित, निर्बलों को न्याय दिलाने के लिए साहित्यकारों को आगे आना चाहिए ।
  डाॅ.माता प्रसाद मित्र (पूर्व राज्यपाल अरुणांचल प्रदेश)

 

रिपोर्ट : फनींद्र तिवारी, देशज टाइम्स। आज मार्तण्ड साहित्यिक, सांस्कृतिक व समाजिक संस्था, लखनऊ के प्रथम स्थापना दिवस पर आयोजित ई सरस कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल डॉ. माता प्रसाद मित्र की अध्यक्षता व सुरेश राजवंशी के संयोजन में सम्पन्न हुआ।

 

कार्यक्रम का संचालन आचार्य प्रेम शंकर शास्त्री ‘बेताब’ लखनऊ ने किया। मुख्य अतिथि छत्तीसगढ की विदुषी लक्ष्मी करियारे के दीप प्रज्ज्वलन व आचार्य प्रेम शंकर शास्त्री की वाणी वंदना से कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ।

डाॅ. माता प्रसाद मित्र ने मौके पर कहा, साहित्य का लेखन स्वतंत्र व निष्पक्ष होने के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर व तर्कसंगत होना चाहिए । जो रूढ़िवादिता से परे हो, ऐसा स्वस्थ साहित्य ही समाज का दर्पण हो सकता है। हमें समाज के दबे कुचले, निर्बलों को न्याय दिलाने के लिए अपनी लेखनी का प्रयोग करना चाहिए । सभी कलमकारों को हमारी शुभकामनाएं।

स्थापना दिवस पर समस्त सम्मानित प्रतिभागी साहित्यकारों को संस्था द्वारा महामहिम के हस्ताक्षरित सम्मान पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।

मुख्य अतिथि लक्ष्मी करियारे ने अपने काव्य पाठ में,पीर को लफ़्ज़ों में अब गाने लगी हूं,झूठा ही सही मुस्कुराने लगी हूं। सुनाकर वाहवाही लूटी तो, छत्तीसगढ़ के ही कवि सूरज श्रीवास ने – “तेरी कातिल अदाओं का हुवा एक दीवाना, समझ न पाया उस महफ़िल को, समा जली थी हासिल करने को, बन्दा था एक निशाना। सुनाया ।

कवि सुरेश कुमार राजवंशी ने ओजस्वी रचना,“मैं महानदी औ सिंधु नदी हूं, ब्रह्मपुत्र का पानी। मैं झलकारी उदा देवी मैं झांसी की रानी हूं। मेरे सीने में रहती है गीता और कुरान भरी, गांधी सुभाष भगत हमीद मैं वह हिंदुस्तानी हूं।।” सुनाकर वाहवाही लूटी तो कवि ललतेश कुमार ने –मैं दरबारों का कवि नहीं , जो उनके गुणों को गाऊंगा। मैं गवांर हूं अपने गांव का सौंधी खुशबू को लाऊंगा। सुनाया।
वहीं कवि रामरतन यादव ने – “नेह का दीप हो, मन में ज्योति जले, तम हमारा मिटे, सत्य के पथ पे चलें, पाप और दोष से, मुक्त मन हो सदा सुनाया तो शायर व हास्य-व्यंग्य कवि पण्डित बेअदब लखनवी ने कवयित्री विजय कुमारी मौर्य की पंक्तियों- वो मेरी सादगी पर मर गया, जिस दिन किया ॠंगार वो बीमार पड़ गया का जबाब देते हुए – अपनी अदाओं नाज़ से कायल बना दिया, तीरे नज़र के वार से घायल बना दिया, होशोहवास में नहीं रहता हूँ इन दिनों, यूँ ‘बेअदब’ को प्यार में पागल बना दिया।” कितनी मोहब्बतों से दिया था तुम्हें मगर, तुमने जला के दिल मेरा काजल बना दिया ।” पढ़कर सभी को हंसा हंसा कर लोटपोट कर दिया।

तो कवि सत्यपाल सिंह ने मां की महिमा का सुन्दर चित्रण अपनी रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया – मां के पावन चरणों जैसे दुनियाँ में कोई पांव नहीं,उपकार तेरे लाखों हैं मुझपर तेरे आंचल जैसी छाव नहीं। वहीं कार्यक्रम के कुशल संचालक आचार्य प्रेम शंकर शास्त्री ने – हीरो असली दे गये आजादी के रंग, इसका सब आनंद ले अपने – अपने ढंग” पढ़कर अमर बलिदानियों के योगदान को इंगित किया ।

सरस्वती प्रसाद रावत ने – “बुद्ध बचाओ भारत को, स्मिता देश की खतरे में। जिस धरती पर जन्म लिया,वह धरती आज अंधेरे मे । पढ़कर राष्ट्र की रक्षा के लिए भगवान बुद्ध का आह्वान किया। पं. विजय लक्ष्मी मिश्रा ने – “वही याद आ रहे हैं, जिन्हें हम भूला न पाए। क्यों दूर जा रहे हैं , मुझसे ही मेरे साये।” पढ़कर रिश्तों के ताने बाने का सजीव चित्रण किया। कवयित्री सुनीता यादव ने – संस्था की वर्षगाँठ पर बधाई देते हुए- बधाई हो बधाई सभी को बधाई। मार्तण्ड साहित्यिक मंच को बधाई।। हुआ पूरा एक वर्ष, सैकड़ा भी पूरा हो।” पढ़कर मनमोह लिया।

कार्यक्रम में उपस्थित कवि/कवयित्री सर्वश्री संतोष कुमार, कुमार सत्यपाल सिंह ‘सजग’, अंजलि गोयल, श्रीकांत त्रिवेदी, पं. बेअदब लखनवी , रेनू वर्मा, आकाश अग्रवाल, डॉ. मेहंदी हसन फहमी, सतीश राजकमल खुरपेंची, राकेश दुलारा, मृत्युंजय सिंह चौहान, अरविंद असर, डॉ. नरेश सागर, सुश्री नीलम डिमरी, नीरज कांत रावत, विजय कुमारी मौर्या, रीमा मिश्रा नव्या, कर्नल ल पी गुर्जर लखनवी, सुनीता यादव, धनेश मिश्रा, डॉ. ज्योत्सना सिंह, डॉ. अजय प्रसून सहित चालीस कवियों ने समसामयिक रचनाओं को सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरी। समारोह में समाज सेवियों ने सहभागिता की। अंत में संस्था के अध्यक्ष सरस्वती प्रसाद रावतने धन्यवाद ज्ञापित कर समारोह का समापन किया।कवियों के रसधार के साथ जीवंत हुई साहित्य, दलित-शोषित-निर्बलों को न्याय की उठी आवाज

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