अप्रैल,26,2024
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FROM THE EDITOR-IN-CHIEF: तू लौट गई फिर शिव की जटाओं में…

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 ब अवयवों से सुंदर/ तीन नेत्रों वाली चतुर्भुजी/ रत्नकुंभ/श्वेतकमल/वरद/अभय से सुशोभित/श्वेत वस्त्र धारणी/मुक्ता मणियों से विभूषित/करुणार्द्रचित्त/भूपृष्ठ को अमृत से प्लावित/दिव्य गंध/ त्रिलोकी से पूजित/सब देवों से अधिष्ठित/दिव्य रत्नों से विभूषित/ दिव्य माल्य अनुलेपन/ अब तू वैसा नहीं रहीं/ हे मातृ गंगे/संसाररूपी विष/ नाश करने वाली/ वंसंतप्तों को जिलाने वाली/ तुझ गंगा के लिए अब मेरे नमस्कार नहीं हैं/

हे मां/क्षमा/ सबकी संशुद्धि करने वाली/ पापों को बैरी के समान नष्ट करने वाली/ भुक्ति/ मुक्ति/ भद्र/ भोग/ उपभोगों को देने वाली हे भोगवती/ जगत् की धात्री/ तीन शुक्ल/ संस्थावाली/ हे क्षमावती/ लिंग धारणी नंदा/ अमृत की धारारूपी/ नारायण्यै नमोनम: नारायणी/संसार की मित्ररूपा/पृथ्वी शिवामृता/ सुवृषा/ फंदों के जालों को काटने वाली/ अभित्रा/शांता/ वरिष्ठा/ वरदा/ उत्रा/ सुखजग्धी/ संजीवनी/ ब्रहिष्ठा/ ब्रह्मदा/सब आपत्तियों को नाश करने वाली/ हे मंगला/आर्तिको हरने वाली/ निर्लेप/ दुर्गों को मिटाने वाली/ दक्षा/हे गंगे! अब ना आप मेरे आगे रहें/आप मेरे पीछे भी ना रहें/

हे गंगे! तू आदि मध्य और अंत सब में है/ सर्वगत है/ तू ही आनंददायिनी है/तू ही मूल प्रकृति है/ तू ही पर पुरुष है/ हे गंगे ! तू परमात्मा शिवरूप है/ हे शिवे! रोगी/ रोग से विपत्ति वाला विपत्तियों से/ बंधन से/ डर से डरा हुआ पुरुष/ छूट जाता है/सब कामों को पाता है/ मरकर ब्रह्म में लय होता जाता है/ वो स्वर्ग में दिव्य विमान में बैठकर जाता है/ फिर ये शारीरिक पाप/ पारुष्य/ अनृत/ चारों ओर पिशुनता/ असंबद्ध प्रलाप/

हे गदाधर! यह सत्य/ सत्य है/ इसमें संशय नहीं/पितरों को संसार से उबारती/ शिवा/ गंगा/ विष्णु मुख्या पापनाशिनी/ रेवती भागीरथी/ श्वेत मगर पर बैठी/ श्वेतवर्ण/ है तीनों नेत्रों वाली/ सुंदर चारों भुजाओं में कलश/ खिला कमल/ अभय/ अभीष्ट लिए/ ब्रह्मा/ विष्णु/ शिवरूप/ है चांदसमेद/ अग्र भाग से जुष्ट/ सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी/ ब्रह्माजी के कमंडल में विराजती/ शिवजी की जटाओं में रह जटाओं का भूषण बनी/ जन्हु महर्षि की कन्या/ पापों को नष्ट करने वाली भगवती/ भागीरथी/ तुम कहां हो/

तय है/धराओं से तेरी धरा/अगल/थलग/विपरीत/सार्थक/कहीं/अब/ दिख नहीं रहा/रहे भी क्यों/हे माते/तेरी एक बूंद/जीवन को अमृत्व देने वाला है/तेरी एक बूंद से शमशान पवित्र हो उठता है/अंतिम संस्कार की आग ऊर्जान्वित हो उठती है/आग को समुच्य मिल जाता है/ तेरी एक बूंद हमारी मर्यादा/संस्कृत हमारे स्वभाव में रचा/बसा है/

सोच/विचार/मनन/चिंतन/सब प्रकार के अनर्थ/भय से/ संस्कारों/नैतिकता को स्वाहा करते/ नपुंसक मंत्रों का मानों हमने अंत/नमः/को कहीं सिंचित/अनाचार को बलपूर्वक/स्वीकार/अधर्म को अख्तियार कर लिया है/

हे मां! आप लोगों के पापों का क्षय करके उन्हें जीवन मृत्यु के चक्कर से बाहर निकाल/मोक्ष प्रदान करती हैं/ जीवन में मनचाही/ सफलता/गंगा में स्नान करते समय/ सभी पापों की क्षमा/ मांगने/ मुक्ति प्राप्ति की प्रार्थना/अब मैं आपसे क्यों करूं/आप की शीतल प्रवाहित जल में/खून के असंख्य छीटें/सन/मिल/लुप्त/गुप्त/प्रवाहित हो चुके/

पानी का रंग/जल का स्वाद/दानवी/मानवों के लायक अब शेष/बचा कहां/

निर्मलता/कोमलता/वही स्वच्छता/अब अकिंचन/यथावत/सिंचित/पुष्पित/रहा/बचा/ मानवों के कलंक/धोते-धोते/अब आपके हाथ/स्थिर/यथावत/बचे कहां/

आपके सिरहाने/लाशों के अनगिनत/असंख्य/दुर्गंध/क्या आपको विचलित नहीं करती/तब भी आप/धरा पर/बहती रही हैं/बहती/खुद रास्ता/तलाशती/हवाओं के अंधेरे/उसकी रोशनी में/बहकती/तभी भी थक नहीं रहीं/

मृत्युकाल/एक बूंद/आपके जल/स्वर्णद्वार खोल/उसकी भरपाई में/समर्थ है/मगर यहां तो/अस्थि/भी तेरे ही हाथों/तुच्छ मानव/बंटोरने को बाध्य करता/वहीं छोड़/कलंकित बन बैठा है/तब भी तू धरा पर है/जीवनप्रदायिकनी बनी/कल-कल बहती/हंसती/मुखाग्नि भी दे रही/पंचतत्व में/खुद के साथ/विसर्जित भी कर रही/

याद है/भरतवंश/ शान्तनु/ प्रतापी राजा/ वो गंगा तट पर आखेट/ गंगा पर पड़ती शान्तनु की नजरें/ विवाह की चाहत/और हे माता गंगे/आपका शर्त/ आप जो कुछ भी करेंगी/ राजा कोई प्रश्न नहीं करेंगे/ हे गंगे/ एक के बाद एक सात पुत्र हुए/हे गंगे उन सभी को आपने नदी में फेंक दिया/ राजा मौन रहे/ आठवां पुत्र/वही नदी/ फेंकने पहुंची हे माते/ शान्तनु की आपत्ति/ और टूटता उनका वचन/ हे गंगे/ अपना विवाह रद/ आपका स्वर्ग वापस जाना/

हे ब्रह्मा के कमंडल से जन्मी गंगा/ नहीं माता/कदापि नहीं/मैं मान बैठा/अब तू/बहकर/अमृत्व समेटे/धरा को छोड़/उन जटाओं में फिर/समाहित/एकत्रित/सिमट चुकी है/जहां से उतरी थी/तेरा अंश अब अगर कहीं शेष है/बचा/तो वह शिव की जटाओं में/ निर्बाध स्थिर है/जहां से/अब तूझे/कोई भागीरथ भी उतार ना पाएगा/शिव की जटा से छोटे से पोखर में उतरी/ सात धाराओं में प्रवाहित/अब तू कंचित/देव तुल्य बची कहां/

मैली सूरत/तेरी/दिखती/धिक्कारती है/तुच्छ मानवों का/संहार/अकारण मौत/पवित्रता की द्वंदात्मक अभिव्यक्ति/ जीवनरेखा/ हर संस्कृति/ जन समुदाय/ सभ्यता/ किसी प्रतीक की जरूरत/ जीवन की अलग स्तर/ कुंभमेलों की ताकत/ हमनें ढ़लान पर छोड़/ तटों पर शवों की डीएनए/उसकी पहचान करने तक की स्थिति में नहीं/बचे/रहे/

हमेशा से हमारी संस्कृति/आध्यात्म/हमारे धर्म में सरोकार/ प्रेरणा का आधार/ वही प्रतीक/गंगा को बचाना/ शुद्ध रखना/ हमारे अस्तित्व/ हमारी जरूरत/ लोगों के उत्साह/ उसकी मंशा/स्वभाव में अब रहा कहां/तू लौट गई फिर शिव की जटाओं में/लौट जा/शायद वही/उस हिमालय से दूर/उन जटाओं में ही तुम्हारे अंश/अब शेष/व्यर्थ नहीं जाएगा/उसी में उसका अस्तित्व/बचा/शेष रह पाएगा/

Deshaj Times Hindi Weekly Magazine Issue May 16, 2021
Deshaj Times Hindi Weekly Magazine Issue May 16, 2021

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