अप्रैल,25,2024
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चीन की ओर से खूनी संघर्ष के बाद भी आखिरकार भारत ने बनाई गलवान घाटी तक सड़क

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– लेह-काराकोरम के बीच रणनीतिक ऑल-वेदर रोड डीएसडीबीओ का निर्माण पूरा
– इसी सड़क के निर्माण से नाराज होकर चीन ने गलवान में किया था खूनी संघर्ष 
– अब चीन के खिलाफ भारत को मोर्चाबंदी करने में होगी बेहद आसानी 
 
 
नई दिल्ली, देशज न्यूज। चीन के तमाम विरोधों और गलवान की हिंसा में 20 जवान खोने के बाद आखिरकार भारत ने पूर्वी लद्दाख में लेह और काराकोरम के बीच 255 किलोमीटर लम्बी रणनीतिक ऑल-वेदर रोड का निर्माण पूरा कर लिया है। दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएसडीबीओ) रोड के बनने की वजह से नाराज (After the bloody struggle from the Chinese side, India finally made the road to Galvan valley) होकर चीन ने गलवान में भारतीय सैनिकों के साथ खूनी भिड़ंत की थी। अब इस मार्ग से केवल गलवान घाटी तक ही नहीं बल्कि उत्तरी क्षेत्रों में भी भारत की पहुंच आसान हो गई है।
 
पूर्वी लद्दाख की सीमा एलएसी पर भारत की अंतिम चौकी दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) के पास चीन ने करीब 50 हजार सैनिकों की तैनाती की है। यहां से चीन के कब्जे वाला अक्साई चिन महज 7 किमी. दूर है। दरअसल यहां चीन अपनी सेना की तैनाती करके एक साथ डेप्सांग घाटी, अक्साई चिन और दौलत बेग ओल्डी पर नजर रख रहा है।
चीन ने पहले ही डेप्सांग घाटी में नए शिविर और वाहनों के लिए ट्रैक बनाए हैं, जिसकी पुष्टि सेटेलाइट की तस्वीरों और जमीनी ट्रैकिंग के जरिये भी हुई है। पूर्वी लद्दाख का डेप्सांग प्लेन्स इलाका भारत-चीन सीमा के सामरिक दर्रे काराकोरम पास के बेहद करीब है। इसी के करीब चीन सीमा पर भारत की अंतिम चौकी (After the bloody struggle from the Chinese side, India finally made the road to Galvan valley) दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) है। 255 किलोमीटर लम्बी दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड यानी (डीएसडीबीओ) इसी के करीब से होकर जाती है। यहां से दौलत बेग ओल्डी की दूरी 30 किलोमीटर है।
 
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल ( एलएसी) के पास स्थित डेप्सांग मैदानी इलाके में चीनी सेना भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग में बाधा डाल रही है, जो भारत-चीन (After the bloody struggle from the Chinese side, India finally made the road to Galvan valley) सीमा के सामरिक दर्रे काराकोरम पास के बेहद करीब का इलाका है। दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड यानी (डीएसडीबीओ) इसी के करीब से होकर जाती है।
यहां से दौलत बेग ओल्डी की दूरी 30 किलोमीटर है। इस डेप्सांग प्लेन में कुल पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 10, 11, 11ए, 12 और 13 हैं जहां चीनी सेना भारतीय सैनिकों को गश्त करने से लगातार रोक रही है। दरअसल यहां एक वाई-जंक्शन बनता है, जो बुर्तसे से कुछ किलोमीटर पर है। उसी से सटे दो नालों (After the bloody struggle from the Chinese side, India finally made the road to Galvan valley) जीवन नाला और रकी नाला के बीच में ये पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट हैं। साफ है कि गलवान घाटी, फिंगर-एरिया, पैंगोंग झील और गोगरा (हॉट स्प्रिंग) के बाद पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच ये पांचवांं विवादित इलाका है।
 
पुराना कारवां मार्ग भारत ने किया पुनर्जीवित 
भारत ने लद्दाख के संवेदनशील क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए 17 हजार 800 फीट की ऊंचाई पर एक पुराने कारवां मार्ग को वैकल्पिक मार्ग के रूप तैयार किया है, जिससे डेप्सांग प्लेन्स, डीबीओ, डीएसडीबीओ तक आसानी से पहुंचा जा सकेगा। यह पुराना मार्ग सियाचिन ग्लेशियर और डेप्सांग प्लेन्स के बीच था (After the bloody struggle from the Chinese side, India finally made the road to Galvan valley) जिसे भारत ने पुनर्जीवित किया है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब होने की वजह से दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड (डीएसडीबीओ) के कई बिंदुओं पर सैन्य जोखिम हैं। यह नई सड़क सियाचिन ग्लेशियर के बेस के पास ससोमा से शुरू होकर 17 हजार 800 फुट ऊंचे सासेर ला के पूर्व तक जाती है। फिर डेप्सांग प्लेन्स में मुर्गो के पास गेपसम में उतरकर मौजूदा (डीएसडीबीओ) से जुड़ जाएगी। अभी फिलहाल भारतीय सेना के वाहन ससोमा से सासेर ला तक जा पाते हैं लेकिन आगे के बाकी इलाकों में पैदल ही जाना पड़ता है।
 
लेह के लिए वैकल्पिक सड़क लिंक
लेह के लिए एक और वैकल्पिक सड़क लिंक भी बीआरओ ने विकसित की है जिसका भी निर्माण कार्य पूरा होने के अंतिम चरण में है। नीमू-पद्म-दार्चा सड़क जल्द ही चालू हो जाएगी, लेकिन इसे एक ऑल वेदर रोड बनाने के लिए 4.15 किलोमीटर लंबी सुरंग 16 हजार 703 फीट की ऊंचाई पर सिनका ला पास पर बनानी होगी। इस सड़क से मौजूदा जोजिला पास वाले रास्ते और सार्चु से होकर मनाली से लेह तक के रूट के मुकाबले समय की काफी बचत होगी। 
यानी कि नई सड़क से मनाली और लेह की दूरी 3-4 घंटे कम हो जाएगी। साथ ही लद्दाख तक तेजी से सैन्य मूवमेंट हो सकेगा। यह ऐसा मार्ग होगा जिससे भारतीय सेना की आवाजाही, तैनाती व लद्दाख तक तोप, टैंक जैसे भारी हथियारों की मूवमेंट की दुश्मन को भनक तक नहीं लगेगी। मनाली से लेह तक इस सड़क के बनने के बाद भारत के पास अब लद्दाख तक पहुंचने के तीन रास्ते उपलब्ध हो जायेंगे, इसलिए चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में चल रहे टकराव के कारण (After the bloody struggle from the Chinese side, India finally made the road to Galvan valley) भारत का यह कदम रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है। 

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