पटना, देशज न्यूज। बिहार एनडीए का चेहरा इसबार एकदम बदला-बदला है। पहले लोकसभा चुनाव में बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे शाहनवाज हुसैन की छुट्टी हो गई। मुख्तार अब्बास नकवी किसी तरह काबिज दिखे अब बिहार सरकार में एक भी मुस्लिम चेहरे का ना होना एक अजीब इत्तेफाक माना जा रहा है याह फिर आजादी के इतने अर्से बाद की यह घटना किसी राजनीतिक संकेत का इशारा भर है।
जानकारी के अनुसार, एनडीए में चार घटक दल हैं मगर एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है। अगड़ी जातियों की संख्या पिछली बार के मुकाबले लगभग 12 प्रतिशत बढ़ी है।
यदि सत्तारूढ़ गठबंधन के 125 विधायकों में से एक भी मुसलमान नहीं हैं, तो विपक्षी गठबंधन के पास भी महज 17 मुस्लिम विधायक ही हैं। राजद के आठ, कांग्रेस के चार और वामदलों का एक विधायक हैं। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के सभी पांच विधायक मुसलमान हैं। इनके अलावा बसपा का एकमात्र विधायक भी मुसलमान ही है।
पिछली विधानसभा में 52 सवर्ण विधायक थे। इस बार उनकी संख्या 64 है। इनमें से एनडीए के 47 व राजद के नेतृत्व वाले विपक्षी महागठबंधन के 17 विधायक हैं। भाजपा के 74 विधायकों में से 33 अगड़ी जातियों से आते हैं, जबकि जदयू के 43 में से 9, वीआईपी के चार में से दो व हम के चार में से एक सवर्ण हैं।
राजद के 75 में से आठ और कांग्रेस के 19 में से आठ विधायक अगड़ी जातियों से है। एक-एक अगड़ा विधायक सीपीआई, लोजपा व निर्दलीय भी जीता है। लेकिन इस विधानसभा चुनाव की सबसे बड़ी खबर मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में 20 प्रतिशत की गिरावट आना है। जहां पिछली विधानसभा के 243 में से 24 विधायक राज्य की 16 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम समुदाय से थे, वहीं इस बार केवल 19 मुस्लिम विधायक ही जीत पाए हैं।