पटना, देशज न्यूज। बिहार में आज हो रहे पहले चरण के मतदान पर सबकी नजर टिकी है। इस चरण में 71 विधानसभा सीटों पर मतदान हो रहा है।इस पहले चरण के चुनाव में अगर किसी की साख पर दांव लगी है तो वो हैं तेजस्वी यादव।
दरअसल, इस बात का समझने के लिए हमें 2015 के चुनावी आंकड़ों पर नजर दौड़ानी होगी। 2015 की तुलना में इस बार का चुनावी समीकरण बिल्कुल बदला हुआ है। उस वक्त राजद-जदयू एक गठबंधन के हिस्सा थे लेकिन इस बार वे दोनों एक दूसरे विरोधी हैं पिछली बार इन 71 सीटों में से 27 पर जीत हासिल कर राजद ने इलाके में अपने प्रभाव का परिचय दिया था।
पिछली बार इस इलाके में भाजपा को 13 और जदयू को 18 सीटें मिली थीं. निश्चित रूप से इस बार समीकरण बदल गए हैं, लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि भापजा-जदयू के साथ हो लेने से मामला एकतरफा हो गया है।
एक बार चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति और स्पष्ट हो जाती है। 2015 में भाजपा के साथ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) और लोजपा थी, लेकिन इस बार वे एनडीए में नहीं है।
दूसरी तरह इस बार राजद को पूरे वाम दलों का समर्थन प्राप्त है. इस इलाके में वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो इस क्षेत्र में RLSP को पिछले चुनाव में 5.2 फीसदी वोट मिले थे, जबकि वाम दलों को 4.2 फीसदी. इस क्षेत्र में राज्य के अन्य इलाकों की तुलना में वाम दलों की मौजूदगी थोड़ी बेहतर है।
दरअसल, राजद को लगता है कि एनडीए में नीतीश के जाने के बावजूद RLSP का उससे छिटकना उनके लिए फायदे का सौदा हो सकता है. राजद के गणित के हिसाब से उसके वोट प्रतिशत में वाम दलों का वोट जुड़ेगा। इसके साथ नीतीश के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का भी उसे फायदा मिल सकता है कि क्यों कि इन इलाकों में अपेक्षाकृत मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कम है।
मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कम होने की वजह से भाजपा चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने में सफल नहीं हो पाएगी.2015 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने भी इस इलाके में अच्छा प्रदर्शन किया था. कांग्रेस ने उस वक्त राज्य में कुल 27 सीटें जीती थीं. इन 27 में से करीब एक तिहाईं सीटें इसी क्षेत्र से थीं।