जन्मदिवस पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित, कार्यक्रम में सात वर्षीय चिन्मय ने बटोरी प्रशंसा
दरभंगा। विश्व आयुर्वेदिक परिषद के तत्वावधान में दयानन्द आयुर्वेदिक कालेज ,सिवान में रविवार को आयोजित कार्यक्रम के दौरान संस्कृत साहित्य के विद्वान स्व. पंडित गंगाधर शर्मा त्रिपाठी के सौंवी जन्मदिवस पर स्मृति ग्रन्थ ‘ गंगाधरामृतम ‘ का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शशिनाथ झा ने कहा कि वैज्ञानिक युग में भले ही चिकित्सा क्षेत्र में नई नई खोज हो रही है। इलाज के तौर तरीके भी अलग अलग हैं लेकिन वस्तुतः आयुर्वेदिक पद्धति ही आज भी सर्वोपयोगी है। यही कारण है कि केंद्र व राज्य की सरकारें आयुर्वेद के विकास के लिए सचेष्ट हैं।
यह जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि स्व. पण्डित त्रिपाठी संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रोक्टर एवम स्मृति ग्रन्थ के प्रधान संपादक प्रो. श्रीपति त्रिपाठी, राष्ट्रपति से सम्मानित प्रो. वाचस्पति शर्मा त्रिपाठी एवम उक्त आयुर्वेदिक कॉलेज सीवान के प्रधानाचार्य डॉ. प्रजापति त्रिपाठी के पिता श्री हैं।
वहीं सारस्वत अतिथि विश्वविद्यालय के निवर्तमान डीन प्रो. शिवाकांत झा ने आयुर्वेद व ज्योतिष विषय पर विस्तृत चर्चा की।इसी तरह प्रो0 वाचस्पति शर्मा त्रिपाठी ने धर्मशास्त्र एवम आयुर्वेद के सम्बन्धों पर प्रकाश डाला।मौके पर कुलसचिव डॉ शिवारंजन चतुर्वेदी ने भी आयुर्वेद की आवश्यकता एवम महत्व पर चर्चा की।
प्रो. सुधांशु शेखर त्रिपाठी व वैद्य अंकेश मिश्र के संयुक्त संचालन में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार दुबे ने की जबकि आगत अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य डॉ त्रिपाठी ने किया। ग्रन्थ के प्रधान सम्पादक प्रो. त्रिपाठी ने ग्रन्थ के बारे में विस्तार से सभी को बताया और आभार भी जताया। विश्व आयुर्वेद परिषद के राष्ट्रीय सचिव एवम प्रांतीय महासचिव डॉ. शिवादित्य ठाकुर ने परिषद की रूप रेखा व इसके महत्व के बारे में बताया।
इसी क्रम में आयोजित अखिल भारतीय निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान पाने वाले दस प्रतिभागियों को कुलपति डॉ झा के हाथों क्रमशः 11000, 7500 एवम 5000 रुपये बतौर पुरस्कार भी दिया गया। इसके पूर्व कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण विंदु रहा पंडित शर्मा का सात वर्षीय प्रपौत्र चिन्मय त्रिपाठी। चिन्मय ने जब मंगलाचरण प्रस्तुत किया तो पूरा कार्यक्रम स्थल तालियों से गूंज उठा। सभी उसकी प्रस्तुति व विलक्षणता की तारीफ कर रहे थे। धन्यवाद ज्ञापन डॉ राजा प्रसाद के जिम्मे रहा।