अप्रैल,20,2024
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बिहार में जैव विविधता की विरासत को विकसित किए जाने की अपार संभावना : डॉ. एनके अग्रवाल

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दरभंगा,देशज टाइम्स ब्यूरो। प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस या विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस अंतरराष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रारंभ किया था। जैव विविधता दिवस को प्राकृतिक व पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव विविधता का महत्व देखते हुए ही अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है।

डॉ.अग्रवाल ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2000 को प्रस्ताव पारित कर प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया। इसका मुख्य उद्देश 22 मई, 1992 को पारित किए गए नैरोबी एक्ट का पालन करना व लोगों को जागरूक करना है।

बिहार में जैव विविधता की विरासत को विकसित किए जाने की अपार संभावना : डॉ. एनके अग्रवाल
बिहार में जैव विविधता की विरासत को विकसित किए जाने की अपार संभावना : डॉ. एनके अग्रवाल

इस दिवस का उद्देश्य ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है जो जैव विविधता में समृद्ध, टिकाऊ व आर्थिक गतिविधियों के लिए अवसर प्रदान कर सके। इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र , भोजन, औषधीय पौधों का महत्व को प्रदर्शित करके जैव विविधता के महत्व और उसके न होने पर होनेवाले खतरों के बारे में जागरूक करना है।

डॉ.अग्रवाल ने कहा कि जैव विविधता सभी जीवों एवं पारिस्थिति तंत्रो की विभिन्नता और असमानता को कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने भी विशेष रूप से कहा है कि साल 2030 के सतत विकास एजेंडा के लिये जैव विविधता आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि वैश्विक नेताओ ने भविष्य की पीढ़ियों  के लिए एक जीवित नक्षत्र सुनिश्चित करते हुए वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिये सतत विकास की एक व्यापक रणनीति पर सहमति व्यक्त की थी। इसपर 193 सरकारों की ओर से हस्ताक्षर किए गए थे।

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डॉ.अग्रवाल ने कहा कि  बिहार में जैव विविधता की विरासत को विकसित किए जाने की अपार संभावनाएं हैं। इस विरासत को विकसित कर विश्व के पटल पर इसका अपना महत्व दिखाया जा सकता है। राजगीर का इलाका, मिथिलांचल का इलाका, मगध का इलाका आदि के समृद्ध विरासत को विकसित कर रोजगार की भी आपार संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। विभिन्न प्रकार के जीव जंतु और पेड़ पौधों का अस्तित्व धरती पर बनाये रखना है।

महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र ने कहा कि भारत सरकार के प्राकृतिक धरोहर संरक्षण के लिए अनुसंधान करने वाली संस्था फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून से आग्रह किया था कि दरभंगा के कामेश्वर नगर परिसर स्थित दुर्लभ पेड़ पौधों को संरक्षण करने व इस प्रजाति को विकसित करने के लिए आवश्यक प्रयास किया जाए। परिणाम शून्य है।

स्थानीय विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति  से भी पत्र द्वारा आग्रह किया गया था कि इसे बचाने तथा सूचीबद्ध करने के लिए वनस्पति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष के नेतृत्व में एक समिति गठित किया जाए।

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डॉ. शिव कुमार कहते हैं कि इन्टैक, दरभंगा चैप्टर की ओर से दरभंगा व मधुबनी जिले के प्राकृतिक धरोहर को सूचीबद्ध करने का काम किया गया है। दरभंगा के लिए डॉ. सुशांत कुमार व मधुबनी के लिए सुनील कुमार मिश्र व उनकी टीम को धन्यवाद देते हैं जिनके कठिन परिश्रम के पश्चात् यह काम पूरा हो सका है। अब संरक्षण के लिए आमलोगों में जागरूकता पैदा करने का प्रयास किया जाना परमावश्यक है।

इंटेक के आजीवन सदस्य और इस क्षेत्र में काम कर रहे चंद्रप्रकाश कहते हैं कि हम जैव विविधता तथा पर्यावरण के बिगड़ते हालात को कोई विशेष योजना या अभियान चलाकर नहीं सुधार सकते। वर्तमान परिस्थितियों में यह साबित भी हो चुका है कि जैसे ही हमने पर्यावरण को प्रदूषित करना बंद किया, प्रकृति ने बड़ी तत्परता से अपने-आप को स्वच्छ कर लिया।

इससे हमें सीख लेनी चाहिए कि हमें प्रकृति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी और संवेदना को अपने जीवन में उतारना होगा और इसके लिए कुछ नया करने की ज़रुरत नहीं, बल्कि अपने देश की संस्कृति और परम्पराओं को ही पुन: आत्मसात करना होगा।

कहा कि इसे हम कृत्रिम दुनिया के चकाचोंध में भूलते जा रहे हैं। इस देश की वो संस्कृति ,जिसमें हमें प्रकृति का सम्मान करना सिखाया गया है । इस देश के वो रीति-रिवाज और तीज़-त्योहार, जिसमें पहाड़ों, नदियों और वृक्षों आदि की पूजा की जाती है । संयोगवश आज वट-सावित्री की पूजा भी है, जिसमें महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।

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इसी तरह के कितने ही तीज़-त्योहार, रीति-रिवाज और विवाह-संस्कार हैं जिसमें पेड़-पौधों से लेकर जीव-जंतुओं तक की पूजा की जाती है । इन परम्पराओं ने हमें प्रकृति के साथ बांध करके रखा था। ताकि हम प्रकृति के महत्व को समझ सके और इसके प्रति संवेदना बनी रहे और इसका सम्मान करते रहें । लेकिन अब ये छोटे शहरों और गाँवों तक ही सीमित है।

बड़े शहरों के लोग इसे आडंबर कहते हैं और हमें पिछड़ा हुआ मानते हैं ।जो भी हो एक बात तो शाश्वत सत्य है कि हमें अपने विकास की राह पर प्रकृति के साथ सामंजस्य बना कर ही चलना होगा वरना इसके परे जो भी रास्ता है वो विनाश की ओर ही ले जाएगा । ये याद दिलाने की ज़रुरत नहीं कि हम इंसान भी प्रकृति की जैव विविधता का ही एक अंग हैं ।

धरोहर प्रेमी सुशांत कुमार का कहना है कि आमलोगों में जागरूकता फैलाकर ही इस अभियान की सफलता सुनिश्चित की जा सकती है ।
कार्यक्रम कॅरोना वाइरस को ध्यान में रखते हुए सोशल डिस्टनसिंग का पालन करते हुए डिजिटली मनाया गया। कार्यक्रम में काफी लोगों ने भाग लिया।

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