बेगूसराय,देशज न्यूज। बिहार में साहित्य की राजधानी के रूप में चर्चित बेगूसराय ने ना केवल राष्ट्रकवि के रूप में चर्चित रामधारी सिंह दिनकर को जन्म दिया। बल्कि, इस धरती ने क्रांतिकारी कविवर रामावतार यादव शक्र को भी जन्म दिया। हालांकि उन्हें रामधारी सिंह दिनकर जैसी प्रसिद्धि नहीं मिल सकी और राजनेताओं, जनप्रतिनिधियों और साहित्यकारों की उपेक्षा के कारण हमेशा हाशिए पर रखे गए हैं।
1986 में बिहार सरकार ने उन्हें राजभाषा सम्मान से सम्मानित किया। लेकिन सिमरिया पंचायत के रूपनगर में पैदा कविवर शक्र आज भी अंधेरे में गुम हैं। स्थानीय लोगों के सहयोग से रूपनगर दुर्गा स्थान में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई। लेकिन बरौनी थर्मल के तात्कालीन जीएम अरुण श्रीवास्तव, तेघड़ा के विधायक तत्कालीन विधायक विरेन्द्र महतों और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री श्रीनारायण यादव द्वारा की गई घोषणाएं आज भी ऐसे ही है और शक्र जी की 65 से अधिक रचनाएं प्रकाशन की प्रतीक्षा में अलमारियों में कैद है।
बरौनी प्रखंड के सिमरिया पंचायत-दो स्थित रूपनगर गांव में हलवाहा मजदूर जानकी यादव के घर एक फरवरी 1915 को पैदा हुए क्रांतिकारी कवि रामावतार यादव शक्र कालांतर में लंबे समय बाद हिंदी साहित्य जगत में जनकवि शक्र के रूप में चर्चित हुए। ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले शक्र जी ने अंग्रेजों के विरोध के बावजूद 1929 में अपने गांव रूपनगर में वैदेही पुस्तकालय की स्थापना की थी, जो पुस्तकालय साहित्यिक, सांस्कृतिक चेतना एवं साम्राज्य विरोधी आंदोलन के विकास में सहायक सिद्ध हुआ।
ब्रिटिश आतंक के खिलाफ लंबे समय तक ना केवल अनिश्चितकालीन हस्तलिखित पत्रिका ‘कुसुम’ निकालते रहे, बल्कि दैनिक अखबार ‘चिंगारी’ के माध्यम से उन्होंने भारत मां के सपूतों के दिल में जोश पैदा किया। जिस अखबार के मुख्य पृष्ठ पर ही ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ नारा छपा रहता था। किसी भी समाज की सबसे बड़ी पूंजी उसकी भाषा, संस्कृति और पुरखों की कीर्ति होती है, उसे संरक्षित और संपोषित करने जिम्मा समाज का होता है।
लेकिन दुर्भाग्य है कि 65 से अधिक पद्य, गद्य, बाल साहित्य, नाटिकाएं, नाटक, हिंदी पद्यानुवाद और संकलन रचित करने वाले शक्र की तमाम रचनाएं उनके 106 वें जन्म दिवस के अवसर पर भी प्रशासन की प्रतीक्षा कर रही है। उद्घोष से अपने पद्य रचना की शुरुआत करने वाले शक्र ने अमर शहीद, बेदी के फूल, 57 के वीर सेनानी और प्रेम पत्र से लेकर शेष कविताएं तक लिखी। शहीदों की टोली से गद्य रचना की शुरुआत करने वाले शक्र ने सन 42 के क्रांति का इतिहास भी लिखा।
पढ़े-लिखे बैलों की कहानी से बाल साहित्य की शुरुआत कर शिशु बोध तक पहुंचे। दीपदान और वीरांगनाएं जैसी नाटिकाएं तथा अमर शहीद करतार सिंह के नाम से नाटक लिखा। ऋतुसंहार, मेघदूतम और श्रीमद्भागवत का हिंदी पद्यानुवाद किया घाघ और भटटरी जैसे संकलन लिखे। अपनी बेखौफ पत्रकारिता और क्रांतिकारिता के कारण मात्र 15 वर्ष की उम्र में गिरफ्तार होकर छह महीने तक जेल की यातना सही। 1942 के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लेकिन आज तक किसी ने उनकेे स्मृति को समृद्ध बनाने का प्रयास नहीं किया। अब एक फरवरी को स्थानीय लोग उनकी जयंती मना रहे हैं तो इस अवसर पर लोगों ने सिमरिया पुल के समीप फोरलेन पर बनने वाले गोलंबर का नाम शक्र चौक रखते हुए उनकी प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है। इसके साथ ही जयंती एवं पुण्यतिथि के अवसर पर राजकीय समारोह आयोजित करने की मांग की है। देखना यह है कि छायावादोत्तर काल के समर्थ कवि रामावतार यादव शक्र के प्रति सरकार और जनप्रतिनिधि क्या कर पाते हैं।